एक देश था बहुत ही बड़ा बहुत ही सुन्दर,
तमाम तहज़ीबों को प्यार से समेटे अपने अंदर,
देश तो आज भी है पर बंटा हुआ इसका परिवेश है,
जो कल तक देश था उसका एक तिहाई हिस्सा विदेश है,
एक सांडर्स की हत्या को हिंसा बताने वालो ने,
चरखा चलाकर आज़ादी का ख्वाब देखने वालों ने,
अहिंसावादी, दिखावटी देशप्रेम दिखाकर,
दिलों में मजहबी लकीरें बनाकर,
तेरे बेटों ने ही तेरी भुजाओं को काट दिया माँ,
बड़ी बेरहमी से तेरे जिस्म को बाँट दिया माँ,
रोई तो तूँ होगी जब ये सरहदें खिंची होंगी,
इन सरहदों की नींव में जब लाशें बिछी होंगी,
पर यहीं तो गलती करी, लाशें देख रोना नहीं था,
वो अहिंसा का उपहार था ,उसे खोना नहीं था,
वो सिंध जहाँ हमारी सभ्यता पैदा हुई,
वो लाहौर जहाँ भगत की पीढ़ी शैदा हुई,
वो मिट्टी तो आज किसी और की हो गयी,
तक्षशिला भी आतंकवाद की भेंट चढ़ गयी,
अब अहिंसावादियों की सियासत का हिस्सा नही बनना मेरे भाई,
हिन्दू हो या मुसलमान हो टुकड़ों में मत बंटना मेरे भाई,
इतिहास में बने भूगोलों को बदल नहीं पाओगे,
अब अगर बंटे तो फिर कभी संभल नहीं पाओगे।
-पवन शुक्ला
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