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Friday, 13 November 2015

माँ के दर्श का प्यासा


पीयूष का प्यासा क्या जाने माँ क्या होती है,
माँ तो सुनहरे जीवन का आग़ाज़ होती है ।
ए प्यासे प्रकृति के फेर बदल से बच,
माँ का आँचल थाम के तो देख,
उसकी तो बात ही निराली होती है ।
पल भर को संसार की मोहमया छोड़,
उसके आँचल में छुप के तो देख ,
स्वर्ग से भी सुंदर अहसास कराती है ।
दो पल को बीवी की ग़ुलामी छोड़ ,
माँ की सेवा कर के तो देख ,
भव सागर तरा देती है ।
विश्वास नहीं तो आजमां के तो देख,
जन्नत का अहसास करा देती है ।
उसकी आँखों में झाँक के तो देख,
सारे संसार की सैर करा देती है ।
उसके चरणो का स्पर्श पा के तो देख ,
जीवन मंगलमय में कर देती है वो ।
ममता के बंधन में बँध के तो देख ,
सुकून की डोर थमा देती है वो ।
ए दर्श के प्यासे कुछ नहीं पड़ेगा देना ,
भर देगी ख़ुशियों से तेरी झोली ,
एक बार उसे प्रेम से माँ कह के तो देख ,
फिर तू भी कहेगा पगले  'प्रेम रतन धन पायो'।

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